Tuesday, October 5, 2010
When We Will be Together
In the whole sky
I will give you chance
To fly
Not on only your thinking
Also your dream
Become true
Let me hold your hand
You will see How much your life change
Monday, September 20, 2010
अधूरे सपने
जिंदिगी के कुछ रिश्ते है
जो बन नहीं पाते
कुछ फासले होते है जिंदगी के
जो मिट नहीं पाते
मंजिले कई होती है जिंदगी की
कुछ मंजिले हम पा नहीं पाते
उड़ना तो चाहते है आकाश की उचाइयो में,
कुछ पर है जो खुल नहीं पाते
फस जाते है जिंदगी के उधेड़-बुन में
और कुछ सपने है जो पुरे हो नहीं पाते |
जो बन नहीं पाते
कुछ फासले होते है जिंदगी के
जो मिट नहीं पाते
मंजिले कई होती है जिंदगी की
कुछ मंजिले हम पा नहीं पाते
उड़ना तो चाहते है आकाश की उचाइयो में,
कुछ पर है जो खुल नहीं पाते
फस जाते है जिंदगी के उधेड़-बुन में
और कुछ सपने है जो पुरे हो नहीं पाते |
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Life,
My Dream,
Unfinished Dreams
अकेला मन
कोई न साथ निभायेगा
रे मेरे मन
माँ बाप संग तेरे
जिनके गोद में बिता तेरा बचपन
कब तक दोस्त संग तेरे
रिश्ते नाते प्यार भी तेरा
एक दिन साथ देगा छोड़ तेरा तन
कुछ तो ऐसा कर जायो, कि
याद करे सारे जन
लाखो की भीड़ में
तू अकेला, अकेला तेरा तन
वो मेरे मन |
रे मेरे मन
माँ बाप संग तेरे
जिनके गोद में बिता तेरा बचपन
कब तक दोस्त संग तेरे
रिश्ते नाते प्यार भी तेरा
एक दिन साथ देगा छोड़ तेरा तन
कुछ तो ऐसा कर जायो, कि
याद करे सारे जन
लाखो की भीड़ में
तू अकेला, अकेला तेरा तन
वो मेरे मन |
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Hindi Poem,
My Dream,
My Mind
Sunday, May 9, 2010
आरजू
सोचता है मन
जीवन का यह उपवन
दुखो कि बारिस
काटों भरा ये जीवन
शीतल पवन के झोके सा
आता जता सुख
पलके आशुओ में डूबी
हसी होठो से विमुख
पर्वत सा अचल मैं
कर्म पथ पर
करता प्रहार
चुनौतियो से घिरा संसार
अटल विश्वास
छुने कि आसमान की ऊँचाई
सपने मन में सजोये
मैं करता प्रयास
उन्हें करने को साकार
Monday, April 19, 2010
याद
तेरी याद आती है जब मुझ को
बहुत तडपाती है तब दिल को
कागज पर लिखता हूँ कुछ
खुद को बहलाने को
सुख जाती है जिव्हा लेखनी की, और
मांगती मिन्नतें न चलने को
फिर देखता हूँ अपनी सुनी आखों से
दाग़ - दार हुए उस कागज को
कोई शायरी नहीं कोई कविता नहीं
दीखता है तेरा अक्स मुझको रुलाने को |
बहुत तडपाती है तब दिल को
कागज पर लिखता हूँ कुछ
खुद को बहलाने को
सुख जाती है जिव्हा लेखनी की, और
मांगती मिन्नतें न चलने को
फिर देखता हूँ अपनी सुनी आखों से
दाग़ - दार हुए उस कागज को
कोई शायरी नहीं कोई कविता नहीं
दीखता है तेरा अक्स मुझको रुलाने को |
Monday, April 5, 2010
अरमान
पैरो में चप्पल नहीं, पर
बढ़ते चले उसके कदम,
दौड़ा वह मैदान की ओर,
क्या थी उसके दिल की धडकन,
जब खिची उसने पतंग की डोर,
बढ़ चली पतंग आसमानों में,
जब मिला उसे पवन का जोर,
पर ये विडम्बना ही तो थी,
बड़ते हुए पतंग कि किसी ने काट दी डोर
Monday, March 15, 2010
प्यारी माँ
उसका एक लाल है
जल रही है ज्वर ताप से
पर लाल की दो छीक से बेहाल है
सो गई बिन तोड़े एक भी निवाला
पर सुला नहीं सकती उसको, जबतक
सान्त न हो जाये लाल की भूख ज्वाला
तब न पूछो उसकी हृदय वेदना
दूर है लाल से और सुनती है उसका रोना
खरोच भी लग जाती है अगर किसी
धारदार से उसके लाल को
है सामर्थ उस समय कि
पिघला दे वो संसार के हर औजार को
माँ के कोमल दिल का कोई तोड़ नहीं हो सकता
उसकी ममतामई आचल कि छाव का कोई मोल नहीं हो सकता
करुणा है जिसमे ममता है जिसमे दिल में भरा है प्यार
ऐसी ही माँ है हमारी माँ के चरणों में है संसार
जल रही है ज्वर ताप से
पर लाल की दो छीक से बेहाल है
सो गई बिन तोड़े एक भी निवाला
पर सुला नहीं सकती उसको, जबतक
सान्त न हो जाये लाल की भूख ज्वाला
तब न पूछो उसकी हृदय वेदना
दूर है लाल से और सुनती है उसका रोना
खरोच भी लग जाती है अगर किसी
धारदार से उसके लाल को
है सामर्थ उस समय कि
पिघला दे वो संसार के हर औजार को
माँ के कोमल दिल का कोई तोड़ नहीं हो सकता
उसकी ममतामई आचल कि छाव का कोई मोल नहीं हो सकता
करुणा है जिसमे ममता है जिसमे दिल में भरा है प्यार
ऐसी ही माँ है हमारी माँ के चरणों में है संसार
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