WELCOME TO PIYUSH'S BLOG :)

rss

Monday, April 19, 2010

याद

तेरी याद आती है जब मुझ को
बहुत तडपाती है तब दिल को
कागज पर लिखता हूँ कुछ
खुद को बहलाने को
सुख जाती है जिव्हा लेखनी की, और
मांगती मिन्नतें न चलने को
फिर देखता हूँ अपनी सुनी आखों से
दाग़ - दार हुए उस कागज को
कोई शायरी नहीं कोई कविता नहीं
दीखता है तेरा अक्स मुझको रुलाने को |

Monday, April 5, 2010

अरमान

पैरो में चप्पल नहीं, पर
हाथ में पतंग और डोर,
बढ़ते चले उसके कदम,
दौड़ा वह मैदान की ओर,
क्या थी उसके दिल की धडकन,
जब खिची उसने पतंग की डोर,
बढ़ चली पतंग आसमानों में,
जब मिला उसे पवन का जोर,
पर ये विडम्बना ही तो थी,
बड़ते हुए पतंग कि किसी ने काट दी डोर
 
Entertainment Top Blogs A1 Web Links -