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Sunday, September 25, 2011

समझाने की मैं कोशिश करता

समझाने की मैं कोशिश करता
क्या तुम समझ भी पाती हो
तुम पर अपना प्यार लुटाता
क्या तुम इतरा जाती हो
छेड़ा करता तुमको ख्वाबो में
क्या तुम शरमा जाती हो
हर पल सोचा करता मैं तुमको
क्या याद मुझे भी तुम कर पाती हो
वक्त की सुई टिक-टिक चलती
क्या तुम घड़िया गिन पाती हो
मेरी आखों में अब नीद नहीं
क्या रातो को तुम सो जाती हो
तेरी हर एक धड़कन पहचान मैं जाता
क्या मेरी आहट तुम सुन पाती हो
हर अहसास तेरे अब मेरे
क्या महसूस मेरी सासों को तुम कर पाती हो
वर्षा करता रहता मैं पियूष की
क्या एक बूद भी पी पाती हो
समझाने की मैं कोशिश करता
क्या तुम समझ भी पाती हो
 
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