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Tuesday, April 24, 2012

TUM MERA PYAR HO

क्यू लगता है कि पास होकर भी दूर हो तुम
क्यू लगता है कि कुछ मजबूर हो तुम
मेरे खयालो कि अनंत गहराई से
निकली एक मूरत हो तुम
फिर सोचता हूँ जब तुम्हे
कोई अनदेखी हुई सी सूरत हो तुम
मैंने बहुत समझाया खुद को फिर भी
हर बार एक नई किताब हो तुम
जब भी ये सोचा कि अब कुछ जान गया हूँ तुम को
ठीक उसी पल लगता है कितनी अनजान हो तुम
हर पल हर घडी तुम को चाहा
मेरी जान हो
तुम
लेकिन ये भी सच है
आज भी मेरे लिए
एक
अनसुलझा हुआ सवाल हो तुम
 
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