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Thursday, September 12, 2013

न रहे बाकि कोई निशां

मुझे अपने गम पर न हसना आया न रोना
आसुओं के इस भवर में न आया कोई सपना सलोना
जाने क्या लिखा है माथे की इन लकीरों में
तार तार हो गया इतने जख्म लगे है सीने में
इक प्यार भरा दिल ही तो माँगा था
वो भी न हुआ इस ज़माने को गवारा
अकेला ही बढ़ रहा हूँ वक्त के साथ
लड़ा हूँ आज तक आगे भी लडूँगा
जबतक है उखड़ न जाये आखरी साँस
जाने रहे न रहे बाकि कोई निशां मेरे जाने के बाद
 
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