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Saturday, June 29, 2013

बदले हालत में बदलता मैं

हर कोई मेरा दिल दुखाने में लगा हैं
ये ज़माना मुझपर मुस्कुराने में लगा हैं
ये तन्हायी ये बेचैनीया अब जीने नहीं देती मुझे
और खुदा है जो मुझे मनाने में लगा है
हर रोज न जाने जहर का कितने जाम पी  जाता हूँ मैं
और शाखी है की अमृत पिलाने में लगा हैं
तमाम ख्वाहिसो और खुशियों को दफ़न कर आया
और चंडाल है की कब्र से ताबूत निकालें में लगा है
अपने गमो को हमसाथी बनाना सीख लिया हमने
और गम है की नये दोस्त बनाने में लगा है
न उमंग न तरंग है अब कोई बाकी
और फिजाये है की नए धुन बनाने में लगा है
अब मंजिल नहीं कोई हर राह बंद हो गई है
पर मुकद्दर है कि नए मोड़ बनाने में लगा है
हर कोई बदल गया इस जमाने की बदल में
हार ही गया हूँ अपने ही किये हुए पहल में
और बदकिस्मती है की मुझे फिर नए रूप में ला
इस बदले ज़माने से लड़ाने में लगा है .........
 
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