आसमा में मेरी पहचान के वास्ते
माँ बना दे मुझे मजबूत उतना
पत्थर का सीना चीरने के लिए चाहिए होता है जितना
सूर्य सा मुझमें तेज भर दे चाँद सी हो मुझमे शीतलता
जल सा तरल बन जाऊ मैं लहरों सी हो मुझमे चंचलता
माँ फिर तू मुझे अपना आशीर्वाद दे
कि विचलित न हो जाऊ अपने कर्म पथ से
फिर विधि कितने ही शूल दे
अविरल बरता ही रहू मैं
तब तक कि मंजिल न मिल जाए मुझे
Realy its very Nice .Go ahead along with your thought .i will wait for your next ...........
ReplyDeletePiysh, Great its nice poem. I really like it waiting for your next post. keep it up..........
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