तेरी याद आती है जब मुझ को
बहुत तडपाती है तब दिल को
कागज पर लिखता हूँ कुछ
खुद को बहलाने को
सुख जाती है जिव्हा लेखनी की, और
मांगती मिन्नतें न चलने को
फिर देखता हूँ अपनी सुनी आखों से
दाग़ - दार हुए उस कागज को
कोई शायरी नहीं कोई कविता नहीं
दीखता है तेरा अक्स मुझको रुलाने को |
बहुत तडपाती है तब दिल को
कागज पर लिखता हूँ कुछ
खुद को बहलाने को
सुख जाती है जिव्हा लेखनी की, और
मांगती मिन्नतें न चलने को
फिर देखता हूँ अपनी सुनी आखों से
दाग़ - दार हुए उस कागज को
कोई शायरी नहीं कोई कविता नहीं
दीखता है तेरा अक्स मुझको रुलाने को |
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