क्यू लगता है कि पास होकर भी दूर हो तुम
क्यू लगता है कि कुछ मजबूर हो तुम
मेरे खयालो कि अनंत गहराई से
निकली एक मूरत हो तुम
फिर सोचता हूँ जब तुम्हे
कोई अनदेखी हुई सी सूरत हो तुम
मैंने बहुत समझाया खुद को फिर भी
हर बार एक नई किताब हो तुम
जब भी ये सोचा कि अब कुछ जान गया हूँ तुम को
ठीक उसी पल लगता है कितनी अनजान हो तुम
हर पल हर घडी तुम को चाहा
मेरी जान हो तुम
लेकिन ये भी सच है
आज भी मेरे लिए
एक अनसुलझा हुआ सवाल हो तुम
क्यू लगता है कि कुछ मजबूर हो तुम
मेरे खयालो कि अनंत गहराई से
निकली एक मूरत हो तुम
फिर सोचता हूँ जब तुम्हे
कोई अनदेखी हुई सी सूरत हो तुम
मैंने बहुत समझाया खुद को फिर भी
हर बार एक नई किताब हो तुम
जब भी ये सोचा कि अब कुछ जान गया हूँ तुम को
ठीक उसी पल लगता है कितनी अनजान हो तुम
हर पल हर घडी तुम को चाहा
मेरी जान हो तुम
लेकिन ये भी सच है
आज भी मेरे लिए
एक अनसुलझा हुआ सवाल हो तुम
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