एक फ़ोन कि घंटी बजी
और नंबर आया माँ
कर दिया silent फ़ोन को
वो यू ही बजता रहा
कुछ देर बाद फिर बजी घंटी
और ये सिलसिला ऐसे ही कुछ देर चला
फिर थक गए माँ के बूढ़े हाथ
और लेट गई आखों में आंसूवो के साथ
फिर जब रात चांदनी कि डूब गई
सूरज ने पंख फैला लिए
ख़त्म हो गई जब पार्टी बेटे कि
तब पूछा माँ को कर के फ़ोन
हाँ क्या बात है क्यू कर रही थी ऐसे फ़ोन
क्या बोलती बेचारी माँ
बस कहा कुछ नहीं तेरी याद आ रही थी
चलो ठीक है और कट कर दिया फ़ोन
माँ के आखों में इस बार भी आसू थे
माँ के आखों में उस बार भी आसू थे
पर बेटा क्या जाने उस दर्द को
जो हर माँ महसूस करती है
हर गम को सह कर हर आंसू को पीकर
गुम-सुम सी रहती है
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