मोहब्बत में दो आसू हमने भी गिराए है
वफ़ा की राह में पैरो में काटे चुभाये है
पटक दिया सर पत्थर पर , कि
जनाजा निकल जाये
पर रहम उस पत्थर को भी आ गया
उसने भी बक्श दिया मुझे
शायाद ये सोचा कर
की पिघल जाये वो कठोर दिल भी कभी
पर न वो पत्थर दिल पिघली न पिघल उसका मन
और हम रोते रह गए जबकि आसू भी हो गए ख़तम
पर न हुआ कम उसका सितम
अब तो बस जिए जा रहे है
बची हुयी जिंदगी को अपने
और बस इंतजार है
No comments:
Post a Comment