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Sunday, May 9, 2010

आरजू

सोचता है मन
जीवन का यह उपवन
दुखो कि बारिस
काटों भरा ये जीवन
शीतल पवन के झोके सा
आता जता सुख
पलके आशुओ में डूबी
हसी होठो से विमुख
पर्वत सा अचल मैं
कर्म पथ पर
करता प्रहार
चुनौतियो से घिरा संसार
अटल विश्वास
छुने कि आसमान की ऊँचाई
सपने मन में सजोये
मैं करता प्रयास
उन्हें करने को साकार

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