रात में जगना नहीं आया
सुबह सोना नहीं आया
मुसीबतों के देख सामने रोना नहीं आया
आंधिया कितनी भी तेज भले रही हो
घुटनों पे बैठ आखों को ढकना नहीं आया
बिजलिया जहाँ कहर गिराती बार बार
मैंने भी आशिया बनाया वहीँ हर बार
नियति ने जितने भी शूल दिए
मजबूत हुआ मैं उतना है हर बार
अब तक,
विधि मुझसे जीत नहीं पाया
और,
मुझे उससे हारना नहीं आया