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Friday, January 3, 2020

चल महफ़िल सजाते हैं


चल आज फिर निठल्लापन जीते हैं
तू नुकड़ वाली दुकान पे टाइम से आजाना
मैं भी सबको ले आता हूँ
भागम भाग वाली ज़िंदगी से
चल कुछ लम्हे चुराते हैं
अपना बाहर वाला दोस्त भी आया इस बार
चल फिर महफ़िल जमाते हैं
कोई फुल चाय पिए गा नहीं
कई बार कटिंग मगाते हैं
सब कोई एक कश मार कर सुट्टा बढ़ाये गा
और पी कर नहीं  कोई चिल्लाए गा
ख़तम हो जाने पे दारू मैं नहीं जाऊ गा
कल भी मैं ही गया था इस लिए नहीं जाऊ गा
घुल गए जो पल नौकरी के आबो हवा मेँ
चल उनमे से कुछ फ़िल्टर कर लाते हैं
चल दोस्तों एक बार फिर महफ़िल सजाते हैं  

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