आज मौन है शब्द
लिखने को भी कुछ बच नहीं
लगता है कुछ इस तरह
शारीर में आत्मा भी रहा नहीं
न कोई मंज़िल नजर आरही
मुड़ने को भी कोई मोड़ दिखा नहीं
आज शांत हो गया ये मन
कोई सोच भी आता नही
कुछ एक वेदनाएं है
पर साफ़ नजर आता नहीं
सांसो में कुछ उतार चढ़व से है
पर उखड जाये ऐसा लगता नहीं
मेरी डोर अब किधर लिए जारही
हवावो का इरादा समझ पा रहा नहीं
बस उही बस इसी तरह
क्या है और क्या नहीं
लिखने को भी कुछ बच नहीं
लगता है कुछ इस तरह
शारीर में आत्मा भी रहा नहीं
न कोई मंज़िल नजर आरही
मुड़ने को भी कोई मोड़ दिखा नहीं
आज शांत हो गया ये मन
कोई सोच भी आता नही
कुछ एक वेदनाएं है
पर साफ़ नजर आता नहीं
सांसो में कुछ उतार चढ़व से है
पर उखड जाये ऐसा लगता नहीं
मेरी डोर अब किधर लिए जारही
हवावो का इरादा समझ पा रहा नहीं
बस उही बस इसी तरह
क्या है और क्या नहीं



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