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Friday, May 20, 2016

कोई नाम नहीं, बदनाम सही


कोई नाम नहीं
बदनाम सही
शुक्र है कम से कम गुमनाम नहीं
मय की गलियों में ही सही
अपनी एक पहचान तो है
समाज में अनजान तो नहीं
माना की ऊँचे तबके में जा नहीं सकता
पर उनको भी इन्ही रास्तो पे आते देखा
मैले है कपड़े पर इमान साफ़ रखता हूँ
उन सफ़ेद पोसो को भी
पल में इमान बदलते देखा
दो रोटी में पेट भर जाते यहाँ
चांदी की थाली वोलोको भी भूख से बिलखते देखा
नहीं है कोठे तो न सही
कम से कम आखो में नीद तो है
पैसे से भरी नहीं फटी जेब ही सही
कोई नाम नहीं, बदनाम ही सही

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