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Monday, November 28, 2011

Mai Kuch Talaash Kar Raha Hun

कुछ दिनों से मै कुछ तलाश कर रहा हूँ 
मै अपने आप में खुद को तलाश कर रहा हूँ
रात के अंधरे में सुबह के उजाले में
किसी कमरे का एक गुमनाम सा कोना हो 
या फिर भरी बाजार का कोलाहल 
मै बुझते चराग में 
लौ की नई किरण तलाश कर रहा हूँ
मै अपने आप में खुद को तलाश कर रहा हूँ
पेड़ की शीतल छाव के निचे
तपती रेत पर नंगे पैर को खिचे 
डरा - डरा सा सहमा हुआ सा
काटो भरी लम्बी राह पर
मंजिल के निंशा तलाश कर रहा हूँ
मै अपने आप में खुद को तलाश कर रहा

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